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आइना

Sanjay Gupta

शायद यह मै नहीं तो फिर यह कौन है,
सोच में पड़ जाता हूँ जब देखता हूँ आइना।
आड़ी तिरछी रेखाअों में उलझा हुआ,
सिमटा हुआ कोई अक्स नजर आता है।
हक़ीक़त है या वहम है ज़िंदगी का ,
जान नहीं पाता हू जब देखता हूँ आइना।
सोच में पड़ जाता हूँ जब देखता हूँ आइना।

ख़ुशी की परछाईं में लिपटा हुआ कोई ग़म शायद,
या फिर सूनी रात के ख़ामोश अंधेरे में जलता हुआ एक मासूम चिराग़।
कुछ तो है अहसास करवाता है जो होने का,
लेकिन क्या ,जान नहीं पाता हू जब देखता हूँ आइना।
सोच में पड़ जाता हूँ जब देखता हूँ आइना।

(C) Sanjay Gupta
07/09/2019


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