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ख़्यालों की कश्मकश

Sanjay Gupta

ख़्यालों की कश्मकश में हर कोई सुलग रहा है।
तनहाइयो में लिपटा हुआ हर पल जल रहा है।
तू सोच ख़्वाहिशों पर तेरा इख़्तियार है क्या।
दिल सब जानता है फिर भी मचल रहा है।
आलम है वेबसी का ख़ुद पर यक़ीं नहीं है।
हर लम्हा ए इंतज़ार में दिन यूँ ही ढल रहा है।
बेबाक़ हसरतों की मंज़िल कहाँ से ढूँढूँ
मैं थक गया हूँ यारों रस्ता ही चल रहा है।
अब और कैसे गाऊँ गीत, सफ़र ए ज़िंदगी का
सासें तो थम गयीं हैं बस दिल धड़क रहा है।
ख़्यालों की कश्मकश में हर कोई सुलग रहा है।
तनहाइयो में लिपटा हुआ हर पल जल रहा है।

(C) Sanjay Gupta
07/07/2019


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