internetPoem.com Login

ख्बाहिशों का क़त्ल

Sanjay Gupta

मैं अक्सर अपनी ख्बाहिशों का क़त्ल किया करता हूँ ,शायद इसलिए मैं अब ख़ुश रहा करता हूँ।
मेरी ज़िंदगी है गमगीन सवालों में सिमटी हुई,
अब मैं सवालों ही सवालों में जिया करता हूँ।
लव ए ख़ामोश में तूफ़ान भरा हो जैसे,
दिया बुझने को हो , ऐसे मैं जला करता हूँ।
अब आइने का अक्स भी डराता है मुझे ,
और मैं रोज़ उसी के लिए ही मरा करता हूँ।

(C) Sanjay Gupta
06/13/2023


Best Poems of Sanjay Gupta