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सपनो की हद
Sanjay Gupta
रोज़ रुठना और मनाना , दिल सपनों में बहलाते कब तक,
सपनों की भी हद होती है , सपने आख़िर आते कब तक।
(C) Sanjay Gupta
07/09/2019
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