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राज़

Sanjay Gupta

राज़ जो परदे में है परदे में ही रहने दो अब,
खुल गया तो कई चहरे जर्द से हो जाएँगे।
जुस्तजु में दफ़्न हैं जो दिल की बातें अब तलक,
खुल गयीं गर कई चहरे सर्द से हो जाएँगे।
रात के जुगनूं हैं अब मेरी ज़िंदगी के हमसफ़र ,
बुझ गये तो रहते लम्हें दर्द में खो जाएँगे।
मैं परिंदों की तरह पर फड़फड़ा के क्या करूँ ,
क्या ख़ुशी क्या ग़म सभी बस गर्द में सो जाएँगे।

(C) Sanjay Gupta
06/12/2023


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