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बेकसूर

Satish Sen Balaghati

।।बेकसूर।।
शिल्पकार निकल गया,,
ज्वलंत दीप बुझ गया
नौनिहालों का मसीहा था अब तक,
गुरुकुल बस बाकी रह गया।।

सुना है अक्सर,
बुजुर्गो से,
अच्छे कर्म ,अच्छी नियति , सच्ची राह,
श्रीम्भगवद्गीता का भी यही सार है,
तो फिर क्यों इस दुनिया में हे ईश्वर,
नेकी करने वाला ही बेबस - लाचार है।

कैसे यक़ीन करें,
तेरी राहे,तेरे फ़ैसले,
अब तक जो चलते आए,
किया वहीं जो तुझे भाए,
गुनहगार सुरक्षित है ईश्वर,
निकल गए नेक राह चलने वाले।।

यही फैसला ना मंजूर है,
क्या दुनिया का यही दस्तूर है,
तो धिक्कार है ऐसी ज़िन्दगी पे,
जहां अच्छे कर्मो का न कोई मोल है।

एक मौका ही दिया होता,
दो लफ्ज़ ही सुन लिया होता,
कहते है आखरी मुराद पूरी होती है,
तेरे द्वारे हर आरज़ू की मंजूरी होती है,
क्यू बेकसूर को जीने न दिया,
क्या अच्छे कर्मो की ऐसी दशा होती है।।

Miss you ajju forever

(C) Satish Sen Balaghati
09/07/2019


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