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ढलती शाम

Nir Baghwar

ढलती शाम के उस सूरज तले
आज भी जब उन सीढ़ियों पे बैठता हूं मैं
तेरा वो साथ होना याद आता है

याद आता है तेरा वो गीत सुनाना
याद आता है तेरा वो मुस्कुराना
याद आता है कि किस तरह तू ढलते शाम के बीच अपनी हसी की सूरज लिए मेरे दिल को रोशन कर जाती थी
याद आता है कि किस तरह तू बातें बना कर सुबहों को शाम कर जाती थी
सब याद आता है मुझे
याद आता है कि किस तरह तू आंखे मिच मेरे साथ कहीं दूर निकल जाया करती थी
और मेरी ज़रा सी हंसी पे तू मुस्कुराया करती थी

याद आता है कि किस तरह मेरी ज़रा सी चोट पे तू घबरा जाया करती थी
और तेरी उस घबराहट को बेवजह बता कर जब मैं हस दिया करता था
तू गुस्से से देख मुझे चुप करा दिया करती थी
सब याद आता है मुझे...

याद आता है तेरा वो गीत सुनाना
याद आता है तेरा वो मुस्कुराना

ढलती शाम के उस सूरज तले
आज भी जब उन सीढ़ियों पे बैठता हूं मैं
तेरा वो साथ होना याद आता है
तेरा वो साथ होना याद आता है।

(C) Nir Baghwar
05/23/2020


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