देखकर कि फूल के सीने से उगता ख़ार है
हम तो हम यह नौबहाराँ ख़ुद बहुत बेज़ार है
सोच में है बाग़बाँ यह कैसी पैदावार है
इतने तो पौधे नहीं है जितनी खरपतवार है
शाख़ और पत्ते भिगो देने से कुछ हासिल नहीं
जबकि पेड़ों की जड़ों को सींचना दरकार है
अब कहाँ वो नर्म गद्दे गाव-तकिए वो कहाँ
शम्मादानों में भी अब अंगार ही अंगार है
आप आएँ न भी आएँ मर्ज़ियाँ हैं आपकी
दिल हमारा आपके वादे से ही गुलज़ार है