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माँ

C K Rawat

तेरी आवाज़ फ़िज़ाओं में अब भी सुनता हूँ
मैं ख़लाओं में तुझको रोज़ देखा करता हूँ

जैसे कि तेरा गुमाँ राहनुमा है मेरा
जैसे कि मैं तेरा आँचल पकड़ के चलता हूँ

सरसराहट सी हवाओं में घुली रहती है
सो भी जाता हूँ कभी जागता भी रहता हूँ

सुबहें आकर मेरी नींदें बिखेर देती हैं
और सिरहाने से मैं ख़्वाब ख़्वाब चुनता हूँ

नाज़ुकी तूने मुझे इस क़दर अता की है
दिल में उलझे हुए काँटों को बड़ा चुभता हूँ

लड़खड़ाऊँगा तू बढ़ कर संभाल लेगी मुझे
तू समझती है मुझे मैं तुझे समझता हूँ

(C) C K Rawat
06/19/2019


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