दो घड़ी के लिए आई भिगो गई बारिश
फिर नामालूम कहाँ जा के खो गई बारिश
सौंधी सौंधी मेरे दिल की ज़मीन होती थी
ऐसे सहरा में भला कैसे हो गई बारिश
सुबह के ख़्वाब के मानिन्द चली आई वो
और मुझे नींद से चौंका के सो गई बारिश
ज़िंदगी फिर से तेरी तिश्नगी में बैठी है
तू न लौटी कभी एक बार जो गई बारिश