मुद्दतों बाद फिर तुम्हे देखा
अब भी बेहद हसीन लगती हो
और किसी बेक़रार शायर की
नज़्म ताज़ातरीन लगती हो
सब दुआओं में तुम को पाया है
कि फ़रिश्तों का तुम पे साया है
रश्क़आमेज़ हैं फ़लक़ वाले
इस क़दर महजबीन लगती हो
ज़िंदगी भर यही शबाब रहे
यूँ ही खिलता हुआ गुलाब रहे
बस सदा ऐसी ही बनी रहना
जैसी तुम नाज़नीन लगती हो
मुद्दतों बाद फिर तुम्हे देखा
अब भी बेहद हसीन लगती हो