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ख़्वाब-दर-ख़्वाब

C K Rawat

ख़्वाब दर ख़्वाब बेक़रारी है
रात अब सुबह तक तुम्हारी है

कोई शुरुआत कर गया ऐसी
कि बदस्तूर खेल जारी है

हसरतों साथ में बने रहना
कि फ़तह बेशुबहा हमारी है

हमने सब सूरतें बयाँ कर दीं
अब हुकूमत की ज़िम्मेदारी है

(C) C K Rawat
06/11/2019


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