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दादा

C K Rawat

क्यूँ हो ग़मगीन इस तरह दादा
क्या है तकलीफ़ की वजह दादा

हैं बड़े लोग नामचीन यहाँ
बस दिलों में नहीं जगह दादा

ख़्वाब-दर-ख़्वाब टूटना जारी
ज़ुल्मतें गिरह-दर-गिरह दादा

यूँ भला कब तलक करे कोई
अपने ही आप से जिरह दादा

राह काँटों भरी सफ़र तनहा
ज़िंदगी हर क़दम सुलह दादा

एकतरफ़ा है जंग यह दादा
ग़ैरमुमकिन यहाँ फ़तह दादा

साफ़ हो जाएगा हिसाब यहीं
न हो मायूस बेवजह दादा

ज़िंदगी भर निबाह के वादे
और बेवक़्त की बिरह दादा

रात ढलने का इंतज़ार करें
जल्द होगी नई सुबह दादा

(C) C K Rawat
06/15/2019


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