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आस्तीन

C K Rawat

झाँकिए अपनी ख़ुर्दबीनों में
हों न हों साँप आस्तीनों में

साल-दर-साल हमने यह जाना
दाग़ छुटते नहीं महीनों में

यूँ तबीयत नहीं मचल उठ्ठी
थी कशिश कुछ तो नाज़नीनों में

उसको घरबार की ज़रूरत क्या
जिसका बचपन कटा हो ज़ीनों में

कल नए आसमान चूमेंगे
आज उगते हैं जो ज़मीनों में

यार हैं जाँ पे खेल जाएंगे
लाख कमियाँ सही कमीनों में

(C) C K Rawat
06/06/2019


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