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“गहराई”

Yogesh V Nayyar

कब्र पर मेरी चढ़ा कर फूल गुलाब का; उन्होंने मेरी कब्र को पांव से टोंच कर पूछा, ठीक तो हो ना।
किसी चीज़ की कमी तो नहीं है?
जज्ब्ब कर अपने जज़्बात ऐ "सागर" तेरे आंसुओं में उसकी तस्वीर नज़र आई।
दरिया से "सागर" तुम बने जिस के लिए उसी ने अपनी औकात दिखलाई।
रात की चादर में छुपा, खुद को उन हसीन आंखों में आंसू लरज़ उट्ठे।
देख उन हसीन आंखों में आंसुओं को तेरा दिल लरज़ उट्ठा।
शांत लहरों में "सागर" फिर तूफान का आगाज़ हुआ है।।
रात की चादर में छुपा खुद को उन हसीन आंखों में आंसू लरज़ उट्ठे।
देख उन हसीन आंखों में आंसुओं को तेरा दिल लरज़ उट्ठा।
शांत लहरों में "सागर" फिर तूफान का आगाज़ हुआ है।।
झूठ की परदादारी बेपनाह मुहब्बत..
आंख का सुरमा, बरसाती बादल बन गए।
उल्फत में उनकी यूं खोए "सागर" की बवंडर में खुद को लील गए।।
फितरत है परवाने की शमा में जल जाना
बरबादी का सबब खुद से बन जाना।
ए "सागर" तू कर ना गुमान अपनी गहराइयों में खो जाने का
आसमां से नीचे है और वहीं ठहर जाना।।
कदमों की आहट सुन दिल धड़कते हैं
हवा की सरगोशियां आंधियों का रुख बदल देती हैं।
सर उठा कर खड़े खुशनुमा वादियों के चमन
बसते तो आखिर आसमां के तले हैं।।
गहराइयों को देख अपनी "सागर" उन गहराइयों पर ना इतरा
तेरी तूफानी रवायतों के सीने में भी दिल धड़कते हैं।।

(C) Yogesh V Nayyar
04/11/2021


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