internetPoem.com Login

बचपन

Dinesh Jangra

दो चार कमिने यार मेरे, थे उल्टी सीधी लावण ने
हप्पा आला जोहड़ रहया ,था डेली गोता लावण ने
खारा टिवल की खेळ भी थी, कागज की किस्ती तिरावन ने
MD स्कूल का न्यारा नजारा था ,आपस में बालक खिजावन ने
गुलशन मास्टर का अंदाज पुराना, था अलंकारा में फ़सावन ने
मोटर साइकिल ना होई कदए ,मज़ा था साइकल पे गलियां में गेडी लावण में
रेडियो भी बंद होगया भाई, था दादा मुंशी ने खबर सुनावन ने
न्यारा मज़ा था भाई बचपन के उन दिना का
रोज गाल में सिक्या करदे, जाड़ा आले महीना का
खोता कह के बोल्या करदा, वो जयसिंह मास्टर इंग्लिश का
वो छोड़ कोन्या भाई गाम ,जी लाग जा से जिसका
मार भी बोहत खाई भाई ,पर शर्म घनी थी आंख्या की
अंगड़बाडी धोरे पीपल ,पे होया करदे तोते मोर
बेरा कोन्या लगाया भाई, लेके गाया कोन चोर
कंचे खेल्या करदे, भाई खोस्न आव था मास्टर
लुक लुक के खेलया करदे ,मास्टर का था घना डर
कहानी थी भाई ये बचपन अर म्हारे गाम निगाना की
बात बता दी सारी भाई क्यी चीज लुप्त हो जावनण की
write by Dinesh nigana

(C) Dinesh Jangra
12/08/2019


Best Poems of Dinesh Jangra