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चले आते हैं परवाने

Ashok Kumar Verma

चले आते हैं परवाने शमा जब रौशन होती है
जल जाते हैं साथ वो भी मौहब्बत जो होती है
अंजाम जानने की चाह न दोस्तो मौहब्बत में होती है
कर देती है जुदा खुद से आलम में जब वो जवानी के होती है
मगर जला कर परवाने को शमा भी रोती है
टपक पड़ते है आसूँ अकेली जब वो होती है
बाद किसी परवाने से उसकी शादी हो जाती है
चाह कर भी ग़म मगर वो पहला ना भुला पाती है
जुदा होकर शौहर से अपने वो फिर लहराती है
" अशोक " ना जा मुझे अकेला छोड़ कर , तुझे तेरी शमा बुलाती है
डूब कर अश्कों में उसके वो पत्थर बन जाता है
हो जाती है लुप्त शमा जब दर्दो ग़म सताता है
-: अशोक कुमार वर्मा :-

(C) Ashok Kumar Verma
09/07/2019


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