"इश्क"

खुशनुमा ज़िंदगी में जब कोई आता है...
चांद धरती पर उतर आता है...
दिल की गैहराइयों को छूती धड़कनें...
हर नगमा खुशनुमा और सुहाना लगता है...!!

लब कहना चाहते हैं कुछ....
निगाहें साथ नहीं देतीं....
थरथराते होंठ और पलकें नहीं उठतीं....
जिन के ख्याले तस्स्वुर से दिल की धड़कनें बेकाबू हो जाती हैं....
वक्त का थम जाना बेमानी सा लगता है...
कहना बहुत होता है पर कैह नहीं पाते....
ये इश्क़ का आलम बड़ा सुहाना लगता है....!!

मऩ्जर कई हैं...मऩ्जर कई हैं...
देखने वालोें की नज़र का तकाज़ा है...
कोई समझे ना समझे....
हमें तुम से अपना रिश्ता बड़ा पुराना लगता है...!!

दानिश, जो कभी हुआ करते थे....दानिश, जो कभी हुआ करते थे....
आज मजनू से याराना लगता है....
क्या जाने कोई क्या होता है इश्क....क्या जाने कोई क्या होता है इश्क....
ये वो फसाना है जो औरों से बयां होता है...!!


योगेश नैय्यर "योग"

Yogesh V Nayyar
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 07/24/2020 The copyright of the poems published here are belong to their poets. Internetpoem.com is a non-profit poetry portal. All information in here has been published only for educational and informational purposes.