जिंदगी

जिंदगी की इस भाग-दौड़ में,
लगातार चलते जा रहे हैं हम ।
ग़म तो इस बात का है कि -
एक दिन के सूरज की तरह
ढलते जा रहे हैं हम ।।
ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं पर
मुस्कुराएँ ,
या कि हम मौत के करीब जाने का
ग़म मनाएँ !
बस इसी सवाल की तपिश से ,
जलते जा रहे हैं हम ।
जिंदगी की इस भाग-दौड़ में ,
लगातार चलते जा रहे हैं हम ।।


मुक़ाम क्या और रास्ता क्या है,
कुछ भी तो नहीं पता ।
कहाँ ठहरूँ, कहाँ से चलूँ
ऐ जिंदगी ! कुछ तो बता ।
कुछ भी जीत लेने पर आख़िर खुश होना क्या ?
और किसी चीज़ के खो जाने पर आख़िर रोना क्या ?
इस प्रश्न का उत्तर जाने बिना,
लगातार प्रश्न बदलते जा रहे हैं हम ।
जिंदगी की इस भाग-दौड़ में ,
लगातार चलते जा रहे हैं हम ।।

Surya Prakash Sharma
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 02/20/2023 The copyright of the poems published here are belong to their poets. Internetpoem.com is a non-profit poetry portal. All information in here has been published only for educational and informational purposes.