Gwara Nhi

गवारा नहीं
गवारा नहीं मुझे
मेरी रूह से वाजिद होना
मगर कसर उन्होंने भी नहीं छोड़ी मेरे जिस्म को नोच खाने की
गवारा नहीं था मुझे
मेरा यू सर झुका कर
आंखें बंद कर कर सब सहने का और किसी के लिए नहीं
अपने जैसी उन हजार लड़कियों का वजूद बचाने के लिए गवारा नहीं मुझे मेरा मोन रहना
मेरा यू समाज के सामने एक खिलौने सा चुप रहना
गवारा नहीं मुझे
उन दहेज में तड़पी हजारों लड़कियों को रोज-रोज
यू शमशान की आग में जलते देखना
हां गवारा नहीं मुझे
मेरे आजादी के पंखों को उन लोगों के हाथ कटवा देना जिनका वजूद मुझसे हो
गवारा नहीं मुझे
उस गंदगी भरे समाज के साथ जीना मरना
जहां बेटी बहू को खरीदना बेचना आता हो
गवारा नहीं मुझे
उनका यू मेरा वजूद मिटाने का हक देना
जिसे मेरे मा बाप ने संसार से परिपूर्ण संकरो से बोया था
मेरे अस्तित्व को
गवारा नहीं मुझे
कि कोई अफसोस हो मेरी लड़की होने से
एक पिता की बेटी हूं
बेटा नहीं बनना चाहती बेटी हूं
कोई कलंक तो नहीं जो अपना वजूद बदल दू
हां माना खिलौना हो सकती हूं उनके लिए
मगर मै अपना जीवन कैसे त्याग दू उनको
इस संसार मै मेरा इतना ही हक है
जितना कि एक लड़के को
इसलिए गवारा नहीं था मुझे
यूं घर में एक चुप सामान सा खड़े रहना
इस खुले आसमान में ख्वाबों संग उड़ना चाहती हूं
गवारा नहीं था मुझे
खुद को यूं दबाना
गवारा नहीं था
गवारा नहीं था।

Neha Singh
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 11/22/2019 The copyright of the poems published here are belong to their poets. Internetpoem.com is a non-profit poetry portal. All information in here has been published only for educational and informational purposes.