तुम्हारी बस्ती में

वो तो करने आएंगे आघात तुम्हारी बस्ती में ।
हाथ जोड़कर बोलेंगे कुछ बात तुम्हारी बस्ती में ।
जात पात सब भूल भुलाकर तुमको गले लगाएंगे ,
बेचेंगे वो खड़े खड़े जज्बात तुम्हारी बस्ती में ।

दोहराएंगे नये नये अध्याय तुम्हारी बस्ती में ।
बड़े बुजुर्गों को भी देंगे राय तुम्हारी बस्ती में ।
कुछ पूछोगे पिघल जाएंगे, हँसकर तुमसे लिपट जाएंगे ,
फिर बोलेंगे बहुत हुआ अन्याय तुम्हारी बस्ती में ।

खुद का करने आएंगे उद्धार तुम्हारी बस्ती में ।
जीतेंगे तो भड़केंगे अंगार तुम्हारी बस्ती में ।
सोच समझकर अपने मत का करना तुम उपयोग ,
वरना ,खुल जाएगा गुंडों का व्यापार तुम्हारी बस्ती में ।

✍ धीरेन्द्र पांचाल

Dhirendra Panchal
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 10/23/2020 The copyright of the poems published here are belong to their poets. Internetpoem.com is a non-profit poetry portal. All information in here has been published only for educational and informational purposes.