नयका साल मुबारक

बीत गयल जे बीते वाला साल तोहें मुबारक ।
फिर से आयल नयका चुड़ा भात तोहें मुबारक ।

फिर से आई खिचड़ी मंटर गोभी संग छउँकाई ।
नयका फगुआ सरसो संगे माहो लेहले आई ।
तीसी मसुड़ी दुन्नो संगवे फिर से ली अंगड़ाई ।
गेंहू के भी लागे असों दाम अकाशे जाई ।
ससुरारी के ढूंढा तिलवा , लात तोहें मुबारक ।
फिर से आयल नयका चुड़ा भात तोहें मुबारक ।

बुढ़िया माई के नईहर से नयका आलू आई ।
बईठ दुआरे कउड़ा बारी आलू भुज खवाई ।
सिलबट्टा के अगुआई से मंटर बनी निमोना ।
धनिया अउर टमाटर के फिर स्वाद भेटाई दूना ।
देखनहरुन के आवाजाही घात तोहें मुबारक ।
फिर से आयल नयका चुड़ा भात तोहें मुबारक ।

✍️ धीरेन्द्र पांचाल

Dhirendra Panchal
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 12/25/2021 The copyright of the poems published here are belong to their poets. Internetpoem.com is a non-profit poetry portal. All information in here has been published only for educational and informational purposes.