मत पूछो

कितना डिजिटल दौर हुआ है मत पूछो ।
2G चारा कोल हुआ है मत पूछो ।
कहते हैं बस चुप रह कर के देखो तुम ,
कैसे शाही कौर हुआ है मत पूछो ।

पीपल में क्यों बौर हुआ है मत पूछो ।
गुंडों का क्यों शोर हुआ है मत पूछो ।
जेलों में पकवान कहाँ से जाते हैं ,
कौन किसका सिरमौर हुआ है मत पूछो ।

भाषण में मौलिकता कितनी मत पूछो ।
जीवन की सार्थकता कितनी मत पूछो ।
घूम रहे हैं दिन भर सूट सफारी में ,
फटा जेब क्यों नंदू का है मत पूछो ।

आँगन का सरदार कहाँ है मत पूछो ।
कल का चौकीदार कहाँ है मत पूछो ।
झुलस रहा हूँ सपनों की चिंगारी से ,
दीपक क्यों गद्दार हुआ है मत पूछो ।

कैसा ये व्यापार हुआ है मत पूछो ।
मतदाता बेकार हुआ है मत पूछो ।
छीन लिए सब रोटी अपने हाथों से ,
यहाँ रोज इतवार हुआ है मत पूछो ।

Dhirendra Panchal
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 08/28/2020 The copyright of the poems published here are belong to their poets. Internetpoem.com is a non-profit poetry portal. All information in here has been published only for educational and informational purposes.