जबरी दूध पियावल जाला

गाढ़े परल समइया हाथे दुब जमावल जाला ।
सांसत में लरिका के जबरी दूध पियावल जाला ।

जइसे तइसे कटे उमिरिया डेरवावे परछाईं ।
कफ़न सरीखा इंतजाम सब कइले बा पुरवाई ।
घर अंगना संदूक भयल , बंदूक देखावल जाला ।
सांसत में लरिका के जबरी दूध पियावल जाला ।

मांसन के व्यापार बढ़ल रोजगार के बहुतै ठाला ।
टेक्नोलॉजी बेबस बा रेडिएशन खूब मंडराला ।
सरकारी अनुदान के मुँहवा फार के घोंटल जाला ।
सांसत में लरिका के जबरी दूध पियावल जाला ।

आफ़त में कांपत बा धरती ना केहुवो पतियाला ।
जंगल काट के मंगल पर अब जीवन खोजल जाला ।
परमाणु हथियारन के खूब शान बघारल जाला ।
सांसत में लरिका के जबरी दूध पियावल जाला ।

गाढ़े परल समइया हाथे दुब जमावल जाला ।
सांसत में लरिका के जबरी दूध पियावल जाला ।

Dhirendra Panchal
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 05/08/2021 The copyright of the poems published here are belong to their poets. Internetpoem.com is a non-profit poetry portal. All information in here has been published only for educational and informational purposes.