अरे राम रे राम

खात गरीबी लात इहाँ हव ,
चिक्कन खाली बात इहाँ हव ।
प्रतिस्पर्धा जात क हउवे ,
झगड़ा खाली भात क हउवे ।
अधिकारीन में बाँटल जाला ,
देखा केतना के कमाला ।
सबके सिधरी बाँट बरावे अपना खातिर बाम ।
अरे राम रे राम ।

रोजगार बेरोजगार क ,
बात करेलन सरोकार क ।
दिया देखावे देश क राजा ,
तेल बेंच के ओकर खा जा ।
अब त हमके इहे बुझाला ,
रामराज बस हउवे हाला ।
लपक के भेंटे सभे दशहरी , हमके लंगड़ा आम ।
अरे राम रे राम ।

जय नगर जय नगरपालिका ,
ईंटा बेंचा चला द्वारिका ।
देखा लाभ न सोचा हानि ।
आपन चउचक रहें परानी ।
सड़कन पे पानी भर जाला ,
बादर देख देख शरमाला ।
अंडा खा खा रोज नहालें गंगा में सरेआम ।
अरे राम रे राम ।

लूट मचल हव अस्पताल में ,
जिनगी जइसे गइल खाल में ।
डाक्टर साहब पेट दबावें ,
हँस के ओके मरल बतावें ।
लाश उठावे ठेला जाला ,
एम्बुलेंस में भयल घोटाला ।
अस्पताल में लइका लेके रोवें मंशाराम ।
अरे राम रे राम ।

✍️ धीरेन्द्र पांचाल

Dhirendra Panchal
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 07/12/2021 The copyright of the poems published here are belong to their poets. Internetpoem.com is a non-profit poetry portal. All information in here has been published only for educational and informational purposes.