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Dard Ka Silsila

Sonam Sharma

थमता ही नहीं मेरे दर्द का सिलसिला
कुछ यूं हैं मेरी ज़िन्दगी का मेला
उलझी उलझी है मेरे हाथों की रेखाएं
धुंधली सी हो गईं है मेरी ज़िन्दगी की उम्मीदें
बिखरी है मेरी खुशियां
बेरंग है मेरा दिन,अब हर रात मेरी काली है
शिकवा करूं किसी ओर से क्या
जब मेरी किस्मत ही मुझसे रूठी हैं
थमता ही नहीं दर्द का सिलसिला
कुछ यूं है ज़िन्दगी का मेला
भटक रही हूं दर्द की गलियों में
तन्हा है मेरा हर सफ़र
टूटे है मेरे सारे सपने,रूठे है मेरे अपने
थमता ही नहीं दर्द का सिलसिला
कैसे संभालू खुद को जब बिखर गई मेरी दुनिया।
poet.sonam

(C) Sonam Sharma
05/23/2021


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