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उसके घर(her House)

Satyaprajna Das

मैं सोचा था आज,
जाऊंगा कल उसके घर,
मिलके उसे,
करूंगा बातें बस दो पल,
जिनमें हो प्यार कि,
वो अनकही दास्तान।

मैं सोचा था आज,
जाऊंगा कल उसके घर।

पहुंचा आके वो कल,
जिसमे गुजारना था बस दो पल।
पर ना था घर वहां,
पर ना थी वो वहां,
ना थी उसकी कोई निशान,
ना थी वो झलकती मुस्कान।
था बस अधुरे अरमान और एक लम्हा,
जिसमें ना वो रेह सकतीथी मेरे बिना,
जिसमें ना में रेह सकतीथा उसके बिना।

मैं सोचा था आज,
जाऊंगा कल उसके घर।

गली गली शहर दोपहर में ढूंडा में,
धीरे धीरे उस्को मुझ से खोया में।
ऐतबार की डोर क्यूं आज छुट रहा है,
खुदा क्यूं मुझ से मेरा किस्मत छिन राहा है.....।

मैं सोचा था आज,
जाऊंगा कल उसके घर.....।

(C) Satyaprajna Das
08/26/2020


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