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मौसम

Sangram Singh

आ गया फ़िर से ये मौसम आ गया फ़िर।
एक जमीं को जमीं में सोने का मौसम आ गया फ़िर।।
आ गया फ़िर से ये मौसम आ गया फ़िर..
मौसम - ए -गुल ने जो पुकारा वादी - ए - फरिस्तों को..
पानी के पत्थरों से लिपटने का मौसम आ गया फ़िर।।
आ गया फ़िर से...
कुछ और उम्र बाक़ी जो थी इन दरखतों के पत्तों की।
उनके करवटों को बदलने का मौसम आ गया फ़िर।।
दिन गुजरते और ढलते बादलों में समां को पिघलने का मौसम आ गया फ़िर।।
आ गया फ़िर से ये मौसम आ गया फ़िर..
मै कुछ अपनी कहूं कुछ तुम अपना कहो, सो जाने दो जमाने को।
इस तरह ये गुजर जाए जो उम्र ,इस कदर
एक वादे को एक वादे से निभाने का मौसम आ गया फ़िर।।।
कुछ इस अंदाज से उनसे जो कही ये दास्तां अपनी।
एक दिल को एक दिल से मिलाने का मौसम आ गया फ़िर,
हा दिल लगाने का सलीका आ गया फ़िर।।
आ गया फ़िर से ये मौसम आ गया फ़िर।।

(C) Sangram Singh
01/12/2021


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