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Sanjay Gupta Poems

  • ख्बाहिशों का क़त्ल
    मैं अक्सर अपनी ख्बाहिशों का क़त्ल किया करता हूँ ,शायद इसलिए मैं अब ख़ुश रहा करता हूँ।
    मेरी ज़िंदगी है गमगीन सवालों में सिमटी हुई,
    अब मैं सवालों ही सवालों में जिया करता हूँ।
    लव ए ख़ामोश में तूफ़ान भरा हो जैसे, ...
  • यादों का बोझ
    शजर यादों के बढ़ गएं हैं अब वो बोझ लगते हैं,
    मैं कोई शाख़ काट दूं तो दिल को इत्मिनान हो।
    नहीं तो टूट जांऊगा मैं ख़ुद अपने ही बोझ से,
    अगर टूटा, खुदा जाने यह मेरा इम्तिहान हो। ...
  • हाल ए दिल
    मिलो तो हाल ए दिल तुझको वताऊं अपना मैं,
    यह जुस्तजु भी ख्बावों  में सिमट गयी है।
    ज़िंदगी ऐसे पढ़ाती है पाठ, हैरान हूँ ,
    कि ख़्बावों की जुस्तजु भी मिट  गयी है। ...
  • यादें
    हुंकार सी दिल में उठती है, जब यादें दस्तक देतीं हैं।
    बेचैनी सी छा जाती है और तन्हा सा कर देतीं हैं।
    मत याद दिलाओ गुज़रे पल, ऐसा न हो कि मैं बह जाऊं ,
    जो बात अभी तक दिल में है वह बात  मैं उससे कह जाऊँ। ...
  • दिल का हाल
    मत पूछ मेरे दिल से रहता कहाँ है अब वो,
    कहीं गुम सा हो गया है आ कर शहर में तेरे।
    रातों की नींद छोड़ो दिन का सकून गुम है,
    बढ़ते ही जा रहें हैं तन्हाइयों के घेरे। ...
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Poem of the day

Eugene Field Poem
Suppose
 by Eugene Field

Suppose, my dear, that you were I
And by your side your sweetheart sate;
Suppose you noticed by and by
The distance 'twixt you were too great;
Now tell me, dear, what would you do?
I know-and so do you.

And when (so comfortably placed)
...

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