एक ललक है, मन बहुत सी झलक है। कैसे उतरू, काव्य जगत में, झिझक के संग तलब है। मुझमें ज्ञान नहीं काव्य पाठ का, कैसे काव्य आरंभ करूं। है नतमस्तक श्रेष्ठ कवियों को, छाया में उनकी मै सदा पलूं। गर हो जाए गलती, आशीष सदा ही बना रहे। निर्मल मन से नेक भाव से, करबद्ध निवेदन उन्हे करूं। जिनके सब्दों में सभी रशों का, समावेश समाहित रहता है। मै अल्पबुद्धी और अज्ञानी, चरणों की रज ही बना रहूं। मुझमें ज्ञान नहीं काव्यपाठ का, मै गुणगान करूं कैसे, शब्दों के अथाह सागर से, हांथ जोड़ आभार करूं नभ - छितिज - और धरातल, अमिट काव्य परिभाषा है, देश अलग भाषा परे, निर्मल शोभा बख़ान करूं ।। सभी श्रेष्ठ कवियों को समर्पित ,प्रणाम ।।

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