हां, मैं आज़ाद हिंदुस्तान लिखने आया हूं

भूखे, गरीब, बेरोज़गार

अनाथों और लाचार की

दास्तान लिखने आया हूं,

हां मैं आज़ाद हिंदुस्तान लिखने आया हूं।



एक ही कपड़े में सारे मौसम गुज़ारने वाले,

सूखा, बाढ़ और ओले से फसल बर्बाद होने पर रोने और मरने वाले

कर्ज़ में डूबे हुए उस अन्नदाता किसान की ज़ुबान लिखने आया हूं,

हां मैं आज़ाद हिंदुस्तान लिखने आया हूं।



मैं भगत, सुभाषचन्द्र और आज़ाद जैसा भारत माँ का सपूत तो नहीं,

लेकिन इन्हें सिर्फ जन्म और मरण दिन पर याद करने और आंसू बहाने वाले,

उन्हें इन सपूतों की याद दिलाने,

फिर से बलिदान लिखने आया हूं,

हां, मैं आज़ाद हिंदुस्तान लिखने आया हूं।



मज़हब के नाम पर ना हो लड़ाई,

जाति धर्म के नाम पर ना हो किसी की पिटाई

सब मिल-जुलकर रहे भाई-भाई,

जाति धर्म से ऊपर उठने के लिए,

इम्तिहान लिखने आया हूं,

हां, मैं आज़ाद हिंदुस्तान लिखने आया हूं।



सीमा पर देश के लिए लड़ने वाले,

अपनी जान की परवाह किए बिना,

देश पर मर मिटने वाले

मैं देश के ऐसे वीरों को सलाम लिखने आया हूं,

हां मैं आज़ाद हिंदुस्तान लिखने आया हूं।



सबके पास हो रोज़गार और अपना व्यापार,

देश मुक्त हो गरीबी, बेरोज़गारी, बलात्कार और भष्ट्राचार

मैं देश के लोगों के सपने और अरमान लिखने आया हूं,

हां, मैं आज़ाद हिंदुस्तान लिखने आया हूं।।

~विकास कुमार गिरि

Vikas Giri
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 06/30/2019 The copyright of the poems published here are belong to their poets. Internetpoem.com is a non-profit poetry portal. All information in here has been published only for educational and informational purposes.