चुनावी मेंढक Poem On Delhi Election

फिर से निकलेंगे चुनावी मेंढक इस चुनाव में,
वो घोषणाओं के पुल बांधेंगे,

लोगो को लालच देकर बहलायेंगे और फुसलायेंगे,
सभी जाति-धर्मों के लोगों से अलग -अलग मिलकर
उनका दुखड़ा गाएंगे,

नीले सियार के वेश में आकर खुद को शेर बताएँगे,
चुनाव जीतने के लिए ये दंगा भी करवाएंगे,
फिर से होंगे नए-नए वादे, जुमले जुमलों का अंबार लगेगा
झूठ फरेब की बातों से कालनेमि का दरबार सजेगा,

जो अभी तक भेड़ियों जैसे मौन थे!
वो रावण जैसे चीखेंगे और चिल्लायेंगे,
खुद को आवाम का हितैषी भी बताएँगे,
चुनाव जीत कर ये फिर से पांच साल के लिए
चूहे के बिल में घुस जायेंगे।

सोच समझ कर वोट करना गर तुमको राष्ट्र बचाना है।
अपने नागरिक होने का तुमको फर्ज निभाना है।।
~विकास कुमार गिरि

Vikas Giri
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 01/31/2020 The copyright of the poems published here are belong to their poets. Internetpoem.com is a non-profit poetry portal. All information in here has been published only for educational and informational purposes.