पिता और बेटी का रिश्ता

पिता के दिल का टुकड़ा बेटी,
पिता की आन बान शान बेटी।
पिता के चेहरे की मुस्कान बेटी,
पिता की चलती सांसों का पैगाम बेटी।
पिता को मिला सम्मान है बेटी।।

एक नन्हा सा परिंदा औलाद पिता की ,
उस परिंदे मैं जान वो जान पिता की,
उड़ान भरने के लिए खुला आसमान पिता ही,
जो बेटी को मिला वो आत्मसम्मान पिता ही।

उसकी उंगली थाम जो कदम बढ़ाए,
मंज़िल ने भी फिर बेटी के आगे सर झुकाए।
वो पहला निवाला जो पिता के हाथ से खाया,
उनसे बड़कर कर प्यार कभी कोई न कर पाया।

जिस बेटी को हमेशा धूप से बचाया,
पिता ही तो है उस पेड़ की छाया।
लोगो ने कहा पर उसने सुना नहीं,
बेटी के भविष्य के ऊपर किसी को चुना नहीं।

समाज ने बांधनी चाही बेड़ियां पैरों में,
पर अपनी बच्ची को खातिर
पिता जा खड़ा हुआ अपनी से दूर गैरों में।
झुक गया पिता पर गिरा नहीं,
वो जनता है, उसके सिवा तेरा कोई सरमाया नहीं।

सारे रिश्ते एक जगह ,
पर बेटी पिता ना रिश्ता कोई।
दोस्तो की कहानियां एक तरफ,
पर पिता बेटी की महफिल सा न किस्सा कोई।

एक आखिरी बात कहूं और अलविदा लेती हूं,
बहुत खुशनसीब है वो हर बेटी,
जिसके पास पिता है।
और मैं तो खुशनसीब इतनी हूं,
मेरे पास पिता नहीं बल्कि
पिता के रूप में खुदा है।।

Tabassum Salmani
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 11/16/2021

Poet's note: 16/11/21 यह कविता मेरे पिता के लिए। उन्होंने मेरे सपनो के लिए अपनी नींद भी पूरी न होने दी। शुक्रिया अब्बू
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