माँ बनने तक की सफर

नौ महीना अनजाना सा एहसास था
एक साथी था जो अन्दर पल रहा था

क्या खाऊँ क्या ना खायूं
धीरे चलूँ अरमदायक कपड़े पहनू
बाएँ करवट सुयूँ या दाएँ
एक अलग सा दुविधा था

हर दिन चाहत थी उसे देखने की
Google और सोनोग्राफी ही ज़रिया था उसे तस्सावुर करने का

फिर वो घड़ी आ गयी जब मै उसे थामी अपनी गोद पे
ये पागल आंसू छलक पड़ी छुपे किसी कोने से

माँ बनने का एहसास इसलिए खास है
जहां कूदरत के होने का एहसास है

पर ये क्या.!!! मैं पेट के अन्दर के खालीपन खलने लगी
वो किक वो धड़कन वो भारीपन||||

ये कुछ वक़्त की बात थी अब मेरी पूरी दुनिया मेरे साथ थी |||

Chaheti Fatima
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 05/21/2019 The copyright of the poems published here are belong to their poets. Internetpoem.com is a non-profit poetry portal. All information in here has been published only for educational and informational purposes.