ऐ मानव!
अपना सूरज चांद बनाकर, समझा हम महान है l
यह धरती क्या, यह अंबर क्या, अपनी मुट्ठी में सारा जहान हैl
चाहे पल में भस्म कर दे, उनकी बनाई सृष्टि कोl
चाहे उनको सांसे दे दे, जिन पर उनकी दृष्टि होl
डरती है सारी कायनात, अपनी बनाई परमाणु सेl
पर औकात चल गया आज पता, जब लड़ न पाए इक विषाणु सेl